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बाल संसद : उद्देश्य, शिक्षक की भूमिका, बाल संसद गठन, एवं समितियों के प्रमुख कार्य

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  बाल संसद क्या है?  बालक- बालिकाओं का एक मंच जिसका प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में गठन किया जाता है।   बाल संसद के उद्देश्य :  जीवन मूल्यों का विकास व्यक्तित्व विकास, नेतृत्व क्षमता, निर्णय लेने का क्षमता, सही/गलत स्पर्श की समझ, समय प्रबन्ध इत्यादि पर स्पष्ट समझ। शिक्षक की भूमिका:  बाल संसद के संयोजक के रूप में सहयोग करना।               मंत्रिमण्डल/स्वरूप /गठन समितियां:  1. प्रधानमंत्री                             1 व 2 में एक छात्रा का चयन अवश्य हो। 2 उप-प्रधानमंत्री 3. शिक्षा मंत्री                             सह मीना मंच मंत्री (अनिवार्य रूप से छात्रा है) 4. उपशिक्षा मंत्री 5, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता मंत्री 6. उप स्वास्थ्य एवं स्वच्छता मंत्री 7. जल एवं कृषि मंत्री 8. उप जल एवं कृषि मंत्री 9. पुस्तकालय एवं विज्ञान मंत्री  10. उप पुस्तकालय एवं विज्ञान मंत्री 11. साँस्कृतिक एवं खेल मंत्री 12 उप साँस्कृतिक एवं खेल मंत्री                             समितियों के प्रमुख कार्य मंत्रिमण्डल                                               कार्य प्रधानमंत्री                          विश

विद्यालयी शिक्षा में नयी पहलें, अधिगम के उद्देश्य एवम विद्यालयी शिक्षा के लिए समेकित योजना

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शिक्षा, मानव संसाधन विकास का मूल है जो देश की सामाजिक-आर्थिक बनावट को संतुलित करने में महत्वपूर्ण और सहायक भूमिका निभाती है बेहतर गुणवत्ता का जीवन प्राप्त करने के लिए एवं अच्छा नागरिक बनने के लिए बच्चों का चहुँमुखी विकास जरूरी है।  शिक्षा की एक मजबूत नींव के निर्माण से इसे प्राप्त किया जा सकता है। इस मिशन के अनुसरण में, मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एम.एच.आर.डी.) दो विभागों के माध्यम से काम करता है   स्कूली शिक्षा और साक्षरता   उच्च शिक्षा विभाग  जहाँ विद्यालय शिक्षा और साक्षरता विभाग देश में स्कूली शिक्षा के विकास के लिए जिम्मेदार है, वहीं उच्च शिक्षा विभाग, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद दुनिया की सबसे बड़ी उच्च शिक्षा व्यवस्था में से एक की देखभाल करता है।  एम.एच.आर.डी. अपने संगठनों जैसे एन.सी.ई.आर.टी, एन.आई.ई.पी.ए. एन.आई.ओ.एस., एन.सी.टी.ई. आदि के साथ मिलकर काम कर रहा है। हालाँकि एम.एच.आर.डी. का दायरा बहुत व्यापक है, यह मॉड्यूल डी.ओ.एस.ई.एल. द्वारा सार्वभौमिक शिक्षा और इसकी गुणवत्ता में सुधार की दिशा में हाल में किए गए प्रयासों पर केंद्रित है। अधिगम के उद्देश्य इस मॉड्यूल के अध्यय

विद्यालय व्यवस्था : शिक्षकों के कौशल, विविधता की स्वीकार्यता और समाधान

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विद्यार्थियों में अंतर की पहचान करने के लिए संवेदनशीलता विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के गुणों और कमजोरियों, योग्यता और रुचि के बारे में जागरूक होना।  • विद्यार्थियों के बीच सामाजिक-सांस्कृतिक, सामाजिक आर्थिक और भौतिक विविधताओं की स्वीकृति—सामाजिक संरचना, पारंपरिक और सांस्कृतिक प्रथाओं, प्राकृतिक आवास, घर तथा पड़ोस में परिवेश को समझना। • मतभेदों की सराहना करना और उन्हें संसाधन के रूप में मानना- अधिगम प्रक्रिया में बच्चों के विविध संदर्भ और ज्ञान का उपयोग करना शिक्षण-अधिगम की विभिन्न जरूरतों को समझने के लिए समानुभूति और कार्य- अधिगम शैलियों पर विचार करना और उसी के अनुसार प्रतिक्रिया देना।  शिक्षार्थियों को विभिन्न विकल्प प्रदान करने के लिए संसाधन जुटाने की क्षमता- आस-पास से कम लागत की सामग्री, कलाकृतियों, अधिगम उपयोगी सहायक स्थानों, मानव संसाधनों और मुद्रित तथा डिजिटल रूप में अनेक संसाधनों को पहचानना एवं व्यवस्थित करना। • प्रौद्योगिकी के उपयोग से अधिगम सहायता करना- विभिन्न एप्लिकेशन का उपयोग। उदाहरण के लिए गूगल आर्ट एंड कल्चर, गूगल स्काई, गूगल अर्थ, विषय विशिष्ट ऐप्स जियोजेब्रा, ट्रक्स ऑफ़

'द एनिमल स्कूल' (जानवरों का विद्यालय)-विश्लेषण के लिए एक कहानी

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 एक बार जानवरों ने फैसला किया कि उन्हें 'नयी दुनिया की समस्याओं को संबोधित करने के लिए कुछ अलग करना होगा, इसलिए उन्होंने एक विद्यालय तैयार किया। उन्होंने दौड़, चढ़ाई, तैराकी और उड़ान से जुड़ी एक गतिविधि पाठ्यचर्या को अपनाया। पाठ्यचर्या संचालन आसान बनाने के लिए सभी जानवरों को प्रत्येक विषय लेना आवश्यक बनाया गया।  बत्तख तैराकी में उत्कृष्ट थी। वास्तव में, अपने प्रशिक्षण से भी बेहतर थी, लेकिन उड़ान में उसे केवल पास होने लायक ग्रेड मिले और वह दौड़ने में बहुत कमजोर थी।  चूँकि दौड़ने में वह बेहद कमज़ोर थी, इसलिए उसे दौड़ने का अभ्यास करने के लिए विद्यालय के बाद रुकना पड़ा और तुर्की भी छोड़नी पड़ी। ऐसा तब तक किया गया, जब तक कि तैरने में सहायक उसके जालीदार पैर खराब नहीं हो गए और वह तैराकी में औसत स्तर पर आ गई, लेकिन विद्यालय में औसत स्वीकार्य था।  इसलिए किसी को भी इस बात की ज़रा-सी भी चिंता नहीं थी, सिवाय बत्तख के खरगोश ने अपनी शुरुआत कक्षा में दौड़ने में अव्वल आने से की, लेकिन तैराकी में उसे इतना सारा काम (अभ्यास एवं पूरक) करना पड़ा कि उसका मानसिक संतुलन जैसे बिगड़ ही गया था।  गिलहरी चढ

सीखने के प्रतिफल, शिक्षण-विधियाँ, समावेशी शिक्षा में आ शिक्षकों की भूमिका

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रा.शै.अ.प्र.प. ने सीखने के प्रतिफल को विकसित किया है जो पठन सामग्री को रटकर याद करने पर आधारित मूल्यांकन से दूर हटाने के लिए बनाया गया है।  योग्यता (सीखने के प्रतिफल) आधारित मूल्यांकन पर जोर देकर, शिक्षकों और पूरी व्यवस्था को यह समझने में मदद की गई है कि बच्चे ज्ञान, कौशल और सामाजिक-व्यक्तिगत गुणों और दृष्टिकोणों में परिवर्तन के मामले में वर्ष के दौरान एक विशेष कक्षा में क्या हासिल करेंगे।  सीखने के प्रतिफल ज्ञान और कौशल से परिपूर्ण ऐसे कथन हैं जिन्हें बच्चों को एक विशेष कक्षा या पाठ्यक्रम के अंत तक प्राप्त करने की आवश्यकता है और यह अधिगम संवर्धन की उन शिक्षणशास्त्रीय विधियों से समर्थित हैं जिनका क्रियान्वयन शिक्षकों द्वारा करने की आवश्यकता है।  ये कथन प्रक्रिया आधारित हैं और समग्र विकास के पैमाने पर बच्चे की प्रगति का आकलन करने के लिए गुणात्मक या मात्रात्मक दोनों तरीके से जाँच योग्य बिंदु प्रदान करते हैं। पर्यावरणीय अध्ययन के लिए सीखने के दो प्रतिफल नीचे दिए गए हैं। . विद्यार्थी विभिन्न आयुवर्ग के लोगों, जानवरों और पक्षियों में भोजन तथा पानी की आवश्यकता, भोजन और पानी की उपलब्धता तथा घ

राष्ट्रीय पाठ्यचर्या(एन.सी.एफ. 2005 ) की रूपरेखा – ऐतिहासिक अवलोकन (पाठ्यचर्या, पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तकें और विशेषताएँ)

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एन.सी.एफ. 2005 एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ है। कक्षा-कक्ष के संबंध में इसके निहितार्थों को अधिक गहराई से समझने से पहले विभिन्न नीतियों और रूपरेखाओं के ऐतिहासिक अवलोकन की आवश्यकता है।  पाठ्यचर्या संबंधित सामग्री विकास की संस्कृति के साथ, रा.शै.अ.प्र.प. (एन.सी.ई.आर.टी.) की स्थापना 1961 में हुई थी और 1975 में पहली पाठ्यचर्या रूपरेखा विकसित की गई थी।  राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के अनुवर्तन के रूप में रा.शै.अ.प्र.प. ने वर्ष 1988 में प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा हेतु राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा नामक एक और पाठ्यचर्या की रूपरेखा तैयार की। इसमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 द्वारा सुझाए गए सर्वमान्य मूल सिद्धांतों पर प्रकाश डाला गया। वर्ष 2000 में, स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2000 तैयार की गई।  इस पाठ्यचर्या का मुख्य ज़ोर अधिगम पर था, जो ऐसी शिक्षा की ओर ले जाता हो जो असमानता से लड़ने में मदद करती है और विद्यार्थियों की सामाजिक, सांस्कृतिक,भावनात्मक तथा आर्थिक आवश्यकताओं को संबोधित करती है। एन.सी.एफ. 2005 वर्ष 2005 में, रा.शै.अ.प्र.प. ने स्कूली शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर

शिक्षण संग्रह (Compendium) : शिक्षण संग्रह की अवधारणा एवं आवश्यकता - ( Concept and Need)

यह सर्वविदित है कि प्राथमिक विद्यालय के वातावरण का प्रभाव बच्चों (विद्यार्थियों) के सम्पूर्ण जीवन पर पड़ता है। प्राथमिक कक्षाओं में शिक्षक/शिक्षिका अपने कार्य एवं आचरण के माध्यम से विद्यार्थियों में अनेक अच्छी आदतों जैसे- अनुशासित रहना, विद्यालय के नियमों का पालन करना, शिक्षकों का आदर-सम्मान करना, आपस में एक दूसरे का सहयोग करना आदि को सहज रूप में अंतरित द विकसित करते रहते हैं यही गुण कालांतर में बच्चों के व्यक्तित्व एवं सामाजिक जीवन में संस्कारों के रूप में परिलक्षित होते हैं। बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण में विद्यालय के शैक्षिक वातावरण की इस महत्त्वपूर्ण भूमिका के सन्दर्भ में अगर हम विचार करते हैं तो प्रमुख रूप से निम्नांकित अवयव उभर कर आते हैं विद्यालय भवन का अत्यंत आकर्षक और साफ सुथरा होना। विद्यालय भवन की बाउण्ड्री वॉल का राष्ट्रीय प्रतीकों, रोचक खेलों, पशु-पक्षियों के रंगीन चित्रों से सुसज्जित होना। विद्यालय भवन की दीवारों, खम्भों फर्श, बरामदों को महापुरुषों के चित्रों, आदर्श वाक्यों/सूक्तियों, वर्णमाला आदि से सुसज्जित होना। कक्षा-कक्षों में समय सारिणी, शैक्षिक चार्ट्स मॉडल्स, लर्

बच्चों का चिन्हांकन - बच्चों के अधिगम स्तर में अंतर को कैसे पता करें?

एक शिक्षक होने के नाते उपरोक्त स्थितियों में आप क्या करेंगे? 1. शैक्षिक सत्र के प्रारंभ में : आपकी कक्षा (कक्षा 3 से 8 तक) में जब बच्चे प्रवेश लेते हैं तब आरम्भिक परीक्षण के माध्यम से प्रत्येक बच्चे के वर्तमान अधिगम स्तर का पता लगाया जा सकता है।  इससे आपको बच्चों के अधिगम स्तर में अंतर का पता चल जाएगा। फिर आप आवश्यकतानुसार अपनी शिक्षण योजना बनाकर अधिगम स्तर के अंतर (गैप) को कम करने का प्रयास कर सकेंगे।  आरम्भिक परीक्षण के लिए प्रत्येक विषय में आधारभूत आकलन प्रपत्र बनाना होगा।  इसके प्रश्न पिछली कक्षा तक की मूलभूत दक्षताओं (लर्निंग आउटकम) के आधार पर बनाये जाएंगे। इसके लिए मूलभूत दक्षताओं की विषयवार सूची पूर्व में ही बना लें।  उदाहरण के लिए, कक्षा 8 के बच्चों के आधारभूत आकलन प्रपत्र में कक्षा 1 से 7 की मूलभूत दक्षताओं के आधार पर प्रश्न बनाए जाएंगे यहाँ यह ध्यान रखना है कि प्रत्येक प्रश्न किस कक्षा के किस लर्निंग आउटकम पर आधारित है, यह अलग से अवश्य लिख लिया जाए।  इससे बाद में शिक्षकों को यह जानने में आसानी होगी कि किर लर्निंग आउटकम पर बच्चों के साथ कार्य करना है। साथ ही अधिगम स्तर के अनुस

लर्निंग आउटकम एवं आकलन

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आप भली भांति अवगत हैं कि विद्यालयीय पाठ्यक्रम का निर्धारण एवं पाठ्यपुस्तकों/ कार्यपुस्तिकाओं का निर्माण विभिन्न कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए निर्धारित दक्षताओं के विकास क ध्यान में रखकर किया गया है।  शिक्षक पाठ्यपुस्तकों/कार्यपुस्तिका व अन्य शिक्षण सहायक सामग्र के माध्यम से अपनी कक्षा-शिक्षण गतिविधियों को संचालित करते हैं।  वास्तव में कक्षा शिक्षण के उपरान्त सबसे महत्वपूर्ण एवं व्यावहारिक पक्ष यह है कि क्या बच्चे उन दक्षताओं को प्राप्त कर रहे हैं अथवा नहीं। लर्निंग आउटकम (अधिगम सम्बन्धी परिणाम): लर्निंग आउटकम इसी बात पर बल देते हैं कि मात्र शिक्षक ही नहीं अपितु अभिभावक भी य जानें कि उनका बच्चा जिस कक्षा में है, उस कक्षा के विभिन्न विषयों में उसे क्या-क्या ज्ञान होन चाहिए और क्या-क्या ज्ञान उसने अर्जित कर लिया है। 'लर्निंग आउटकम (अधिगम सम्बन्धी परिणाम ) से आशय उन परिणामों (दक्षताओं) से है जो किसी कक्षा में अध्ययनरत विद्यार्थियों को उनके निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुरूप अपेक्षित दक्षताओं के प्राप्त होने पर परिलक्षित होते हैं। यह एक 'परिणाम आधारित लक्ष्य है' जो कि बच्चे की प्र

ध्यानाकर्षण (अधिगम आधारित शिक्षण) की आवश्कता एवं उद्देश्य

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किसी भी कक्षा में कुछ बच्चे अपनी कक्षा एवं आयु के अनुसार अधिगम सम्प्राप्ति स्तर अर्थात् परीक्षाओं तुलनात्मक रूप से कम अंक प्राप्त कर पाते हैं तथा उनका परीक्षा परिणाम भी सामान्य  बच्चों की तुलना में संतोषजनक नहीं होता है।  प्रायः देखा गया है कि शिक्षक द्वारा विभिन्न शैक्षणिक प्रयासों के बावजूद बच्चों में भाषा कौशलों को ग्रहण करने में कठिनाई होती रही है।  उदाहरणस्वरूप लिखने में वर्तनी की अशुद्धियाँ, वर्णों-शब्दों को पहचानने में कठिनाई तथा उच्चारण में काफी अशुद्धियाँ देखी गई हैं। इसके अलावा बच्चों में भाषा ज्ञान के बावजूद बोलने व बातचीत में झिझक महसूस करने जैसी समस्याएँ देखी ग हैं।  इसी प्रकार गणित विषय में अंकों व चिह्नों की पहचान, संख्याओं के आरोही व अवरोही क्रम को समझने, जोड़, घटाना, गुणा व भाग तथा अधूरी गिनती को पूरा करना जैसी गणितीय क्रियाओं में या तो वे अशुद्धियाँ करते हैं या समझ नहीं पाते हैं।  यही हाल लगभग अन्य विषयों में भी होता है। क्या कोई ऐसा तरीका है जिससे शैक्षिक तौर पिछड़ रहे बच्चे हमारे विद्यालयों से निराश न हो और उनमें पुनः आत्मविश्वास की जागृति हो और वे भी परीक्षा में अच