राष्ट्रीय पाठ्यचर्या(एन.सी.एफ. 2005 ) की रूपरेखा – ऐतिहासिक अवलोकन (पाठ्यचर्या, पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तकें और विशेषताएँ)

एन.सी.एफ. 2005 एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ है। कक्षा-कक्ष के संबंध में इसके निहितार्थों को अधिक गहराई से समझने से पहले विभिन्न नीतियों और रूपरेखाओं के ऐतिहासिक अवलोकन की आवश्यकता है। 




पाठ्यचर्या संबंधित सामग्री विकास की संस्कृति के साथ, रा.शै.अ.प्र.प. (एन.सी.ई.आर.टी.) की स्थापना 1961 में हुई थी और 1975 में पहली पाठ्यचर्या रूपरेखा विकसित की गई थी।

 राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के अनुवर्तन के रूप में रा.शै.अ.प्र.प. ने वर्ष 1988 में प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा हेतु राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा नामक एक और पाठ्यचर्या की रूपरेखा तैयार की।

इसमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 द्वारा सुझाए गए सर्वमान्य मूल सिद्धांतों पर प्रकाश डाला गया। वर्ष 2000 में, स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2000 तैयार की गई।

 इस पाठ्यचर्या का मुख्य ज़ोर अधिगम पर था, जो ऐसी शिक्षा की ओर ले जाता हो जो असमानता से लड़ने में मदद करती है और विद्यार्थियों की सामाजिक, सांस्कृतिक,भावनात्मक तथा आर्थिक आवश्यकताओं को संबोधित करती है।

एन.सी.एफ. 2005

वर्ष 2005 में, रा.शै.अ.प्र.प. ने स्कूली शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर 21 आधार-पत्रों के साथ राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 तैयार की। 

नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के बाल अधिकार अधिनियम, 2009 में स्पष्ट रूप से राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 के कार्यान्वयन का उल्लेख करते हुए विद्यार्थी-केंद्रित ऐसे पर्यावरण निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने की बात कही गयी है, जिसमें विद्यार्थी किसी तनाव के बिना सीखते हैं।

 अधिक जानकारी के लिए, वेब लिंक https://mhrd.gov.in/rte देखें। सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों के मद्देनजर, राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 (एन.सी.एफ. 2005) में स्कूली शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्यों को पहचाना गया है

• बच्चों को उनके विचार और कार्य में स्वतंत्र होना और दूसरों के प्रति और उनकी भावनाओं के प्रति संवेदनशील बनाना।

• बच्चों को एक लचीली और रचनात्मक तरीके से नवी स्थितियों का सामना करने और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भाग लेने के लिए सशक्त बनाना।

 • बच्चों में विकास की दिशा में काम करने और आर्थिक प्रक्रियाओं और सामाजिक परिवर्तन में योगदान करने की क्षमता का विकास करना। इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए स्कूलों को समानता, गुणवत्ता और लचीलेपन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। देश की विविधता को देखते हुए, विद्यार्थियों के संदर्भों को कक्षा में लाना महत्वपूर्ण है।

 एन.सी.एफ. 2005 पाठ्यपुस्तकों से परे जाने के लिए शिक्षकों की भूमिका पर जोर देती है ताकि बच्चे अपने स्वयं के अनुभवों से रोल प्ले, ड्राइंग, पेंटिंग, ड्रामा, शैक्षिक भ्रमण और प्रयोगों के संचालन के माध्यम से सीख सकें।

एन.सी.एफ. 2005 में मूल्यांकन को अधिगम और शिक्षा की अंतर्निहित प्रक्रियाओं के रूप में देखने की जरूरत पर भी जोर दिया गया है। इसके लिए आवश्यक है कि शिक्षक अपने परीक्षण के परिणामों की प्रतीक्षा करने, रिकॉर्डिंग तथा रिपोर्टिंग पर समय व्यतीत करने के बजाय तत्काल सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से अपने तरीके से बच्चों का निरंतर और व्यापक रूप से मूल्यांकन करें।

 इसके अलावा, इसमें न केवल गणित, भाषा, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान बल्कि जीवन कौशल, सामाजिक, व्यक्तिगत, भावनात्मक और मनु गतिक कौशल सीखने पर भी महत्व दिया जाता है।

 एन.सी.एफ. 2005 में विद्यार्थी-केंद्रित शिक्षणशास्त्र पर प्रकाश डाला गया है, जिसका अनुसरण तब किया जा सकता है जब पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तकों और कक्षा की गतिविधियों की योजना को विकसित करते समय भी विद्यार्थी पर ध्यान केंद्रित हो।

 उदाहरण के लिए, यदि हम प्राथमिक स्तर पर पौधों के बारे में एक विवरण शामिल करना चाहते हैं तो पाठ्यक्रम को उन पौधों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो बच्चे अपने दैनिक जीवन में देख सकते हैं, छू सकते हैं और जिनके बारे में बात कर सकते हैं।

 पाठ्यपुस्तक में उसी का विवरण प्रदान करना चाहिए। शिक्षक उन अवसरों की योजना बना सकते हैं जहां बच्चे अपने घरों, पड़ोस, स्कूलों आदि में देखे गए पौधों के पोस्टर बना सकते हैं और साझा कर सकते हैं।

 इस प्रक्रिया में वे अपने अनुभवों को पाठ्यपुस्तक में दिए गए अनुभवों से जोड़ेंगे। ऐसा करते समय, शिक्षक प्रत्येक बच्चे के सीखने के प्रतिफलों में प्रगति का निरीक्षण करेंगे।



चर्चा के बिंदु

जोड़े बनाकर कार्य करें और एक शिक्षक के आमतौर पर विद्यालय में बीतने वाले दिनों के बारे में जानें। यदि शिक्षा के उपर्युक्त उद्देश्यों में से किसी को भी दिन-प्रतिदिन के शिक्षण में साकार किया जा रहा है तो इसके बारे में चर्चा करें? आप अपने दिन कैसे व्यतीत करते हैं?


विद्यालय के विषय और एन.सी.एफ. 2005

आइए, हम एन.सी.एफ. 2005 और विभिन्न विषयों के शिक्षण पर बारीकी से विचार करें। इसमें बताया गया है कि भाषाओं के शिक्षण के दौरान बहुभाषी प्रवीणता को बढ़ावा देने के लिए भाषा का संसाधन के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए। 

भाषा के अर्जन को हर विषय-क्षेत्र में महत्व दिया जाना चाहिए क्योंकि यह पूरे पाठ्यचर्या में महत्व रखता है। पढ़ना और लिखना, सुनना और बोलना, यह समस्त पाठ्यचर्या क्षेत्रों में, बच्चे की प्रगति में योगदान करते हैं अतः इन्हें पाठ्यचर्या की योजना का आधार होना चाहिए। 

गणित को इस तरह से पढ़ाए जाने की ज़रूरत है कि यह समस्याओं को तैयार करने और हल करने के लिए सोच, तर्क और कल्पना की क्षमता का संवर्धन करे विज्ञान के शिक्षण को नया रूप दिया जाना चाहिए ताकि यह बच्चों को रोज़मर्रा के अनुभवों की जाँच और विश्लेषण करने में सक्षम बनाए। 

हर विषय में पर्यावरण संबंधी चिंताओं पर ज़ोर दिया जाना चाहिए और इसके लिए विस्तृत श्रेणी की गतिविधियाँ बनाई जानी चाहिए, जिनमें कक्षा के बाहर किए जाने वाले क्रियाकलाप भी शामिल हों। सामाजिक विज्ञान के अध्ययन में हाशिए पर रह रहे समूहों के परिप्रेक्ष्य में एकीकरण पर जोर देते हुए अनुशासनात्मक संकेतकों को पहचानने का प्रस्ताव है। हाशिए पर रह रहे

समूहों और अल्पसंख्यक संवेदनशीलता से संबंधित बच्चों के प्रति जेंडर, न्याय और संवेदनशीलता संबंधित जानकारी सामाजिक विज्ञान के सभी क्षेत्रों द्वारा प्रदान की जानी चाहिए। 

एन.सी.एफ. 2005 में, चार अन्य पाठ्यचर्या क्षेत्रों पर भी ध्यान आकर्षित किया गया है कार्य, कला एवं विरासत संबंधी शिल्प, स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा तथा शांति इसमें इन क्षेत्रों को पाठ्यचर्या के दायरे में लाने की संस्तुति की जाती है। 

प्राथमिक चरण में अधिगम को काम के साथ में जोड़ने के लिए कुछ ठोस कदम इस आधार पर सुझाए गए हैं कि काम करने से, ज्ञान अनुभव में बदल जाता है और इससे आत्मनिर्भरता रचनात्मकता और सहयोग जैसे महत्वपूर्ण व्यक्तिगत और सामाजिक मूल्य उत्पन्न होते हैं।

 चार प्रमुख क्षेत्रों अर्थात संगीत, नृत्य, दृश्य कला और थिएटर को सम्मिलित करते हुए शिक्षा के सभी स्तरों में, एक विषय के रूप में कला के अध्ययन की संस्तुति की गई है, जिसमें अंत: क्रियात्मक दृष्टिकोण पर जोर दिया गया है।


 एन.सी.एफ. 2005 के अनुसरण में, पठन विषय क्षेत्रों में विकसित पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों में विद्यार्थी केंद्रित शिक्षणशास्त्र को समावेशी व्यवस्था की आवश्यकतानुसार बनाने का प्रयास किया जा रहा है।

 हमें यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि प्रत्येक बच्चे में सीखने की क्षमता है, लेकिन सामग्री, परिवेश, स्थिति और सार्थकता, अधिगम को दिलचस्प बनाती है।

 इसलिए, किसी भी पाठ्यपुस्तक को पढ़ाते समय, हमें इन उद्देश्यों और इस पर भी विचार करने की आवश्यकता होती है कि इसका उपयोग विशेष आवश्यकता वाले बच्चों और लाभ-वंचित घरों की पृष्ठभूमि वाले सभी बच्चों के साथ कैसे किया जा सकता है।


चर्चा के बिंदु

• क्या विद्यार्थी-केंद्रित शिक्षणशास्त्र का उपयोग बड़ी कक्षाओं में किया जा सकता है? 

• क्या सभी विषयों को पढ़ाने की योजना विद्यार्थी-केंद्रित शिक्षणशास्त्र का उपयोग करके बनाई जा सकती है?


पाठ्यचर्या :

हम सभी विद्यालयीकरण की प्रक्रिया से गुजर चुके हैं। हम जानते हैं कि विद्यालय में विद्यार्थियों के समग्र विकास में योगदान देने वाली सभी गतिविधियाँ पाठ्यचर्या पर केंद्रित होती हैं। 

पाठ्यचर्या और उसके लेन-देन को समझना सभी हितधारकों को पाठ्यपुस्तक की सामग्री, संज्ञानात्मक और मानवीय मूल्यों के विकास तथा जेंडर से संबंधित सरोकारों को एकीकृत करने एवं अधिगम की प्रक्रिया में सभी विद्यार्थियों के समावेशन प्रक्रिया से जुड़ने में मदद करता है।

पाठ्यचर्या को निर्धारित करने वाले बुनियादी कारकों में शामिल हैं— अधिगम की प्रकृति, स्वीकृत सिद्धांतों और सामाजिक प्रभावों द्वारा प्रदान किए गए मानव विकास का ज्ञान। 

इसके अलावा, समाज की आवश्यकताएँ और आकांक्षाएँ काफ़ी हद तक पाठ्यक्रम की प्रकृति, सामग्री, विषयों, विषयवस्तु एवं उसकी व्यवस्था निर्धारित करती हैं।

 पाठ्यचर्या को परिवर्तनकारी भूमिका भी निभानी होती है। शिक्षकों और शिक्षक प्रशिक्षकों के रूप में हम जानते हैं कि कुछ ऐसे पहलू हैं जो अनौपचारिक रूप से एक विद्यालय प्रणाली में सिखाए जाते हैं जिसे छिपी हुई

वर्या कहा जाता है। यूपी हुई पाठ्यचर्या में वे सभी व्यवहार, दृष्टिकोण और मनोभाव शामिल हैं जो नीं स्कूली शिक्षा के दौरान प्राप्त करते हैं। यह समझना महत्वपूर्ण है कि एक छिपी हुई वर्या वह है जो विद्यार्थी विद्यालय में ग्रहण करते हैं और यह अध्ययन के औपचारिक कम का हिस्सा हो भी सकता है या नहीं भी हो सकता है।


पाठ्यक्रम:

पाठ्यक्रम कक्षावार और विषयवार, पढ़ाए जाने वाले विषयों की सूची प्रदान करता है। इसमें विषय और मूल्यांकन मानदंडों को पूरा करने के लिए समय अवधि भी प्रदान की जाती है।

 पाठ्यक्रम एक दस्तावेज़ है जो पढ़ाई जाने वाली विषयवस्तु की जानकारी देता है और अपेक्षाओं और जिम्मेदारियों को परिभाषित करता है।

 शिक्षण के लिए यह एक आवश्यक दस्तावेज़ है जिसमें पाठ्यक्रम के मूल तत्व रेखांकित होते है, जैसे कि कौन से विषय शामिल किए जाएँगे, साप्ताहिक अनुसूची और परीक्षाएँ, असाइनमेंट्स और संबंधित अधिभार सूची।

 पाठ्यक्रम में सीखने के प्रतिफल, आकलन, सामग्री और शैक्षणिक रीतियों के बीच संबंध को स्पष्ट किया जाता है। अधिगम के दौरान विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करने हेतु पठन विषयों को जिस रचनात्मक तरीके से सुव्यवस्थित किया जाता है, पाठ्यक्रम उसको भी प्रकट करता है। 

एक शैक्षणिक पाठ्यक्रम के लिए चार आवश्यक घटक है— विषय और प्रश्न, उद्देश्य, सुझाई गई गतिविधियाँ, शिक्षकों के लिए संसाधन और नोट्स।

पाठ्यपुस्तकें:

पाठ्यपुस्तकें, पाठ्यक्रम में शामिल विषयों/विषयवस्तुओं पर सामग्री प्रदान करती हैं। पाठ्यपुस्तक सभी विद्यार्थियों के लिए एक मुद्रित/डिजिटल शिक्षण संसाधन है। उन्हें एन.सी.एफ. के परिप्रेक्ष्य में विद्यार्थी के अनुकूल और चिंतनशील होने की आवश्यकता है।


विद्यार्थी केंद्रित पाठ्यपुस्तकों की विशेषताएँ:

कम जानकारी और अधिक गतिविधियों के साथ अंत: क्रियात्मकता।

• विद्यार्थियों को अपने स्वयं के ज्ञान को प्रतिबिंबित करने और निर्माण करने के लिए स्थान प्रदान करती हैं।

.देश की विविधता को शामिल करती हैं।

.संवैधानिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता का प्रदर्शन करती हैं। सामाजिक सरोकारों, जैसे- जेंडर, समावेशन आदि के प्रति संवेदनाओं के लिए जगह प्रदान करती हैं।

• काम करने के लिए जगह प्रदान करने का प्रयास करती हैं। आई.सी.टी. को स्थान प्रदान करने का प्रयास करती हैं। अंतर्निहित मूल्यांकन करती हैं। 

• सरल भाषा में सामग्री प्रस्तुत करती हैं।


• कला, स्वास्थ्य और शारीरिक शिक्षा को एकीकृत करती हैं।


विद्यालयों में पुस्तकालय की भूमिका:

एन.सी.एफ. 2005 में एक विद्यालय के पुस्तकालय का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि विद्यालय पुस्तकालय को एक ऐसे बौद्धिक स्थान के रूप में देखा जाना चाहिए जहाँ शिक्षक, बच्चे और समुदाय के सदस्य अपने ज्ञान और कल्पना को गहरा बनाने के साधन खोजने की उम्मीद कर सकते हैं।

 विद्यालय का पुस्तकालय, सभी पाठ्यक्रमों के सभी विद्यार्थियों के लिए, सीखने का एक प्रमुख केंद्र हो सकता है। साक्षरता पर हुए अध्ययनों में इस बात की पुष्टि होती है और जिसे शिक्षक वर्षों से जानते भी रहे हैं - बच्चों का किताबों से जितना अधिक संपर्क होता है, वे उतने ही अच्छे पाठक बनते हैं।

 पुस्तकालयों के व्यापक उपयोग के माध्यम से पुस्तकों के साथ लिप्त होकर और प्रतिदिन बच्चों के लिए पढ़कर, शिक्षक बेहतर पठन-व्यवहार को बढ़ावा दे सकते हैं।

 वे बच्चों को पाठ्यपुस्तकों से परे ज्ञान के स्रोतों का पता लगाने की संभावना प्रदान करते हैं। आज बच्चों के पुस्तकालयों में रखा साहित्य केवल कहानियां ही नहीं है, बल्कि इसमें काल्पनिक, काल्पनिक और कविता जैसी पुस्तकों की एक विस्तृत श्रृंखला भी शामिल है। 

पुस्तकालय प्रारंभिक कक्षा के बच्चों से लेकर युवा वयस्कों तक सभी को सीखने में योगदान दे सकते हैं और साथ ही यह शिक्षकों के लिए ज्ञान का एक महान भंडार हो सकते हैं। 

विद्यालय पुस्तकालय एक अलग कमरे या कक्षा पुस्तकालय या अन्य किसी ऐसे तरीके से चलाए जा सकते हैं जो विद्यालय को उचित लगे और जिसमें सफलता की संभावना हो।

 महत्वपूर्ण यह है कि किताबों के साथ बच्चों के मेल-जोल को संभव बनाया जाए।

 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के संदर्भ में विद्यालय के प्रधान अध्यापकों, शिक्षकों, पुस्तकालयाध्यक्षों द्वारा विद्यालय में पुस्तकालय स्थापित करने और चलाने के लिए कुछ आवश्यक दिशानिर्देश प्रदान करने के लिए एक पुस्तकालय प्रशिक्षण मॉड्यूल, रा.शै.अ.प्र.प./ राज्य द्वारा विकसित किया जा सकता है।


चर्चा के बिंदु

अपनी कक्षा में पाठ्यपुस्तकों से परे जाने का एक शिक्षण अनुभव साझा करें। इस तरह के अनुभव में आपके विद्यार्थियों की भागीदारी और सीखने की क्षमता क्या रही है? पुस्तकालय स्कूली शिक्षा का एक महत्वपूर्ण घटक हैं, लेकिन अधिकतर इन्हें पुस्तकों से भरा स्थान माना जाता है। पुस्तकालय के माहौल को अधिक जीवंत और गतिशील बनाने के बारे में अपने विचार साझा करें।

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