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शिक्षण योजना कैसे बनायें? देखें कक्षा शिक्षण हेतु कुछ शिक्षण योजनाएँ नमूने के रूप में

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शिक्षण योजनाएं:-  हम सभी मानते हैं कि 'सीखने-सिखाने की प्रकिया और शिक्षण की सफलता शिक्षण योजनाओं पर निर्भर होती है।  इसलिए कक्षा शिक्षण हेतु कुछ शिक्षण योजनाएँ नमूने के रूप में जा रही हैं जो विभिन्न कक्षाओं और विषयों पर आधारित हैं। इन शिक्षण योजनाओं में लर्निंग आउटकम को केन्द्र बिन्दु (Focal Point) के रूप में लिया गया है।  पाठ्यकरम की भिन्न-भिन्न अताओं/ कौशलों के लिये अनेक गतिविधियों और अभ्यासों को भी शामिल किया गया हैं। साथ ही इनमें पाठ्यपुस्तक से संबंधित प्रकरणों और कार्यपुस्तिका के अभ्यासों को भी शामिल किया गया है।  शिक्षण योजना के विभिन्न चरणों हेतु अनुमानित समय का भी बँटवारा किया गया है । आपसे अपेक्षा है- सभी शिक्षक साथी इसी पैटर्न पर शिक्षण योजना बनाकर अपनी कक्षाओं में सीखने-सिखाने की गतिविधि संचालित करेंगे। इन शिक्षण योजनाओं में सुझायी गयी गतिविधियों के अलावा अन्य गतिविधियों को भी आवश्यकतानुसार शामिल कर उपयोग करेंगे। अपनी योजना के आधार पर उपयुक्त सामग्री और गतिविधियों की तैयारी करेंगे और कक्षा में एक बेहतर वातावरण बनाएंगे। चयनित लर्निंग आउटकम से संबंधित पाठ को दिवस/घंटों /खण

भाषा विकास के तरीके एवं सम्बन्धित गतिविधियां

शिक्षक प्रतिवर्ष माह अप्रैल में कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों का आरग्भिक परीक्षण करके उनके अधिगम सम्प्रापित स्तर जानने की प्रक्रिया करेंगे जो बच्चे आरम्भिक परीक्षण में कक्षा 1-2 के लर्निग आउटकम के स्तर पर होंगे उन्हें 50 कार्य दिवसीय फाउण्डेशन लर्निंग शिविर में भाषा/ गणितीय गतिविधियां सम्पादित करके मुख्यधारा में लाना होगा तत्पश्चात् कक्षा 3-4 और 5 की भाषा / गणितीय दक्षताओं के विकास की गतिविधियों सम्पादित करना उचित होगा। भाषा उपयोग से ही सीखी जाती है। इसलिए भाषा शिक्षण में सुनने, बोलने, पढ़ने और लिखने के कारण का उपयोग करना चाहिए।  शिक्षक के रूप में हमारा कार्य है बच्चों में भाषा के विविध रूपों में उपयोग का कारण उत्पन्न करना।  भाषा में अर्थ का निर्माण सन्दर्भ के सहारे होता है। हम अपने मन में कही अथवा सुनी गई बात के अर्थ का निर्माण करते हैं, फिर उसकी अभिव्यक्ति होती है मन में शब्दों के माध्यम से छवि बनाना भाषा सीखने के लिए सबसे आवश्यक है। इस स्तर पर भाषा शिक्षण में निम्नांकित बातों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। कक्षा में व्यक्तिगत और समूह कार्य का उचित संतुलन बनाये रखना। कक्षा में बातचीत को

गणित सीखने-सिखाने का सही क्रम क्या होना चाहिए?

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बच्चों के पास स्कूल आने से पहले गणित से सम्बन्धित अनेक अनुभव पास होते हैं बच्चों के तमाम खेल ऐसे जिनमें वे सैंकड़े से लेकर हजार तक का हिसाब रखते हैं। वे अपने खेलों में चीजों का बराबर बँटवारा कर लेते हैं।  अपनी चीजों का हिसाब रखते हैं। छोटा-बड़ा, कम-ज्यादा, आगे-पीछे, उपर-नीचे, समूह बनाना, तुलना करना, गणना करना, मुद्रा की पहचान, दूरी का अनुमान, घटना-बढ़ना जैसी तमाम अवधारणाओं से बच्चे परिचित होते हैं।  हम बच्चों को प्रतीक ही सिखाते हैं। उनके अनुभवों को प्रतीकों से जोड़ना महत्वपूर्ण है। गणित मूर्त और अमूर्त से जुड़ने और जूझने का प्रयास है अवधारणाएँ अमूर्त होती हैं चाहे विषय कोई भी हो।  गणितीय अमूर्तता को मूर्त, ठोस चीजों की मदद से सरल बनाया जा सकता है। जब मूर्त को अमूर्त से जोड़ा जाता है तो अमूर्त का अर्थ स्पष्ट हो जाता है।  प्रस्तुतीकरण के तरीकों से भी कई बार गणित अमूर्त प्रतीत होने लगता है। शुरुआती दिनों में गणित सीखने में ठोस वस्तुओं की भूमिका अहम होती है इस उम्र में बच्चे स्वाभाविक तौर पर तरह-तरह की चीजों से खेलते हैं, उन्हें जमाते. बिगाड़ते और फिर से जमाते हैं।  इस प्रक्रिया में उनकी

गणित में जोड़ शिक्षण के तरीके और गतिविधियां, देखें गतिविधियों के माध्यम से

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गणित सीखने-सिखाने के परम्परागत तरीकों में गणित सीखने की प्रक्रिया की लगातार होती गयी है और धीरे-धीरे वह परिणाम आधारित हो गयी।  आप भी अपनी कक्षा में यही सब नहीं कर रहे हैं? कैसा माहौल रहता है आपकी गणित की कक्षा में? इसी माहौल से गुजर कर आपके सवालों के सही जवाब भी देने लगते होंगे।  पर क्या आपने जानने की कोशिश की कि ने सही जवाब देने के लिए किस प्रक्रिया को अपनाया? एक साधारण जोड़ को बच्चे ने इस प्रकार किया।   यहाँ विचार करें तो आप पाते हैं कि पहले प्रश्न को बच्चे ने सही हल किया परन्तु दूसरे शल में वही प्रक्रिया अपनाने के बाद भी क्यों उसका उत्तर सही नहीं हैं? क्या हमारी लक्ष्य केवल इतना है कि बच्चा जोड़ना सीख लें? या उसमें जोड़ करने की प्रक्रिया की समझ भी विकसित करनी है वास्तव में जोड़ की समझ के विकास में निहित है। दो या अधिक वस्तुओं या चीजों को एक साथ मिलने से परिणाम के रूप में वस्तुओं की संख्या का बढ़ना। स्थानीय मान का शामिल होना। . यह समझना है कि हासिल अर्थात जोड़ की क्रिया में परिणाम दस या अधिक होने पर दहाई की संख्या अपने बायें स्थित दहाइयों में जुड़ती हैं जिसे हासिल समझा जाता है। . परि

शिक्षण, अधिगम और आकलन में आई.सी.टी. (सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी) का समाकलन

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यह मॉड्यूल आई.सी.टी. की अवधारणा और शिक्षण-अधिगम में इसकी संभावनाओं पर चर्चा करता है।  मॉड्यूल का उद्देश्य शिक्षक को समीक्षात्मक रूप से विषयवस्तु, संदर्भ, शिक्षण-अधिगम की पद्धति का विश्लेषण करने और उपयुक्त आई.सी.टी. के बारे में जानने के लिए तैयार करना है।  इसके साथ ही यह प्रभावी ढंग से समेकित नीतियाँ बनाने के बारे में भी उन्हें सक्षम बनाता है। अधिगम के उद्देश्य: इस मॉड्यूल को सही ढंग से समझने के बाद, शिक्षार्थी-  • आई.सी.टी. का अर्थ स्पष्ट कर सकेंगे; • विषयस्तु के मूल स्वरूप और शिक्षण-अधिगम की नीतियों के अनुकूल उपयुक्त शिक्षण साधनों की पहचान कर सकेंगे।  • विविध विषयों के लिए शिक्षण, अधिगम व मूल्यांकन हेतु विभिन्न ई-केटेंट (डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक रूप में उपलब्ध सामग्री), उपकरण, सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर की जानकारी प्राप्त साधनों की पहचान कर सकेंगे; • आई.सी.टी. विषयवस्तु शिक्षणशास्त्र समेकन के आधार पर शिक्षण-अधिगम की रूपरेखा निर्माण एवं क्रियान्वयन कर सकेंगे। परामर्शदाता ध्यान दें:- • परामर्शदाता को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जरूरत के अनुसार प्रशिक्षण स्थल पर टेस्कटॉप/ लैपटॉप, प्रोजेक्शन सिस्ट

समावेशी शिक्षा क्या है? समावेशी शिक्षा की विशेषताएं एवं रिपोटिंग/डाक्युमेन्टेशन

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कक्षा में बच्चों के साथ कार्य करते हुए आपने अनुभव किया होगा कि हर बच्चा स्वयं में कोई न कोई विशिष्टता एवं विविधता लिए होता है । उनके रुचि और रुझानों में भी यह विविधता पाई जाती है।  यह विविधता काफी हद तक उनके परिवेश एवं परिस्थितियों के कारण या शारीरिक आकार प्रकार से प्रभावित होती है। बच्चों में इस विविधता के कारण कुछ खास श्रेणियाँ उभरकर आती हैं। जैसे- तेज/धीमी गति से सीखने वाले, शारीरिक कारणों से सीखने में बाधा अनुभव करने वाले बच्चे, परिवेशीय व लैंगिक विविधता वाले बच्चे।  इनमें कुछ और श्रेणियाँ भी जुड़ सकती हैं। शिक्षक के रूप में इतनी विविधता से भरे बच्चों को हमें कक्षा के भीतर सीखने का समावेशी वातावरण देना होता है। समावेशी शिक्षा अर्थात् ऐसी शिक्षा जो सबके लिए हो। विद्यालय में विविधताओं से भरे सभी प्रकार के बच्चों को एक साथ एक कक्षा में शिक्षा देना ही समावेशी शिक्षा है। समावेशी शिक्षा से तात्पर्य है वह शिक्षा जिसमें किसी एक विशेष व्यक्ति श्रेणी पर निर्भर न होकर सभी को शामिल किया जाता है । "समावेशन शब्द का अपने-आप में कुछ खास अर्थ नहीं होता है। समावेशन के चारों ओर जो वैचारिक, दार्

वर्ल्ड क्लास कैसे होगी हायर एजुकेशन?

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 एजुकेशन समिट 2020 के कॉलेज कॉलिंग सेशन में डीयू के पूर्व वाइस चांसलर प्रोफेसर दिनेश सिंह, जेएनयू के वाइस चांसलर प्रोफेसर एम जगदीश कुमार और आईआईटी दिलनाली के डायरेक्टर प्रो वी रामगोपाल राव जुड़े।   हॉयर एजुकेशन से जुड़े मुद्दों पर विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी और बताया कि कितने जरूरी बदलाव लंबे समय से रुके हुए थे, जो छात्रों के हित के लिए अब किए जाएंगे।  प्रोफेसर दिनेश सिंह ने अपनी बात रखते हुए कहा कि 4 साल का कोर्सर्स छात्रों के लिए बहुत सुविधाजनक होगा।   छात्र 1 साल का कोर्स कर सर्टिफिकेट, 2 साल के बाद डिप्लोमा और तीन साल पूरे करके डिग्री ले जाएगा और जब चाहें कोर्स से एग्जिट ले जाएगा।   इससे छात्रों को फ्लेक्सिबिलिटी और फ्रीडम दोनों मिलेंगे।  इससे छात्रों को अपनी पसंद के सब्नजेक्ट पर फोकस करने में आसानी होगी।   पूरे कोर्स के दौरान छात्र अपने बारे में कहते हैं कि एग्जिट लेने के लिए स्वतंत्र रूप से वे यह खुद तय कर लेंगे कि वे कब नौकरी करना चाहते हैं या किसी सबजेट पर रिसर्च करना चाहते हैं।  उनहोनें देश को उत्तरलेज इकॉनमी बनाने की बात भी कही।  जेएनयू के वीसी प्रोफेसर एम जगदीश कुमार ने कहा क