संदेश

teaching jobs लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आकलन प्रपत्र का निर्माण कैसे करें? देखें कक्षा- 1 गणित का सैम्पल प्रपत्र

चित्र
आकलन प्रपत्र का निर्माण बच्चों के स्तर को जानने के लिए किया जाता है, जिससे आगामी शिक्षण योजना का निर्माण किया जा सके। प्रारंभिक आकलन के पश्चात ही शिक्षण योजना के अनुसार कार्य प्रारंभ करना चाहिए।  

शिक्षण योजना कैसे बनायें? देखें कक्षा शिक्षण हेतु कुछ शिक्षण योजनाएँ नमूने के रूप में

चित्र
शिक्षण योजनाएं:-  हम सभी मानते हैं कि 'सीखने-सिखाने की प्रकिया और शिक्षण की सफलता शिक्षण योजनाओं पर निर्भर होती है।  इसलिए कक्षा शिक्षण हेतु कुछ शिक्षण योजनाएँ नमूने के रूप में जा रही हैं जो विभिन्न कक्षाओं और विषयों पर आधारित हैं। इन शिक्षण योजनाओं में लर्निंग आउटकम को केन्द्र बिन्दु (Focal Point) के रूप में लिया गया है।  पाठ्यकरम की भिन्न-भिन्न अताओं/ कौशलों के लिये अनेक गतिविधियों और अभ्यासों को भी शामिल किया गया हैं। साथ ही इनमें पाठ्यपुस्तक से संबंधित प्रकरणों और कार्यपुस्तिका के अभ्यासों को भी शामिल किया गया है।  शिक्षण योजना के विभिन्न चरणों हेतु अनुमानित समय का भी बँटवारा किया गया है । आपसे अपेक्षा है- सभी शिक्षक साथी इसी पैटर्न पर शिक्षण योजना बनाकर अपनी कक्षाओं में सीखने-सिखाने की गतिविधि संचालित करेंगे। इन शिक्षण योजनाओं में सुझायी गयी गतिविधियों के अलावा अन्य गतिविधियों को भी आवश्यकतानुसार शामिल कर उपयोग करेंगे। अपनी योजना के आधार पर उपयुक्त सामग्री और गतिविधियों की तैयारी करेंगे और कक्षा में एक बेहतर वातावरण बनाएंगे। चयनित लर्निंग आउटकम से संबंधित पाठ को दिवस/घंटों /खण

भाषा विकास के तरीके एवं सम्बन्धित गतिविधियां

शिक्षक प्रतिवर्ष माह अप्रैल में कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों का आरग्भिक परीक्षण करके उनके अधिगम सम्प्रापित स्तर जानने की प्रक्रिया करेंगे जो बच्चे आरम्भिक परीक्षण में कक्षा 1-2 के लर्निग आउटकम के स्तर पर होंगे उन्हें 50 कार्य दिवसीय फाउण्डेशन लर्निंग शिविर में भाषा/ गणितीय गतिविधियां सम्पादित करके मुख्यधारा में लाना होगा तत्पश्चात् कक्षा 3-4 और 5 की भाषा / गणितीय दक्षताओं के विकास की गतिविधियों सम्पादित करना उचित होगा। भाषा उपयोग से ही सीखी जाती है। इसलिए भाषा शिक्षण में सुनने, बोलने, पढ़ने और लिखने के कारण का उपयोग करना चाहिए।  शिक्षक के रूप में हमारा कार्य है बच्चों में भाषा के विविध रूपों में उपयोग का कारण उत्पन्न करना।  भाषा में अर्थ का निर्माण सन्दर्भ के सहारे होता है। हम अपने मन में कही अथवा सुनी गई बात के अर्थ का निर्माण करते हैं, फिर उसकी अभिव्यक्ति होती है मन में शब्दों के माध्यम से छवि बनाना भाषा सीखने के लिए सबसे आवश्यक है। इस स्तर पर भाषा शिक्षण में निम्नांकित बातों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। कक्षा में व्यक्तिगत और समूह कार्य का उचित संतुलन बनाये रखना। कक्षा में बातचीत को

गणित में जोड़ शिक्षण के तरीके और गतिविधियां, देखें गतिविधियों के माध्यम से

चित्र
गणित सीखने-सिखाने के परम्परागत तरीकों में गणित सीखने की प्रक्रिया की लगातार होती गयी है और धीरे-धीरे वह परिणाम आधारित हो गयी।  आप भी अपनी कक्षा में यही सब नहीं कर रहे हैं? कैसा माहौल रहता है आपकी गणित की कक्षा में? इसी माहौल से गुजर कर आपके सवालों के सही जवाब भी देने लगते होंगे।  पर क्या आपने जानने की कोशिश की कि ने सही जवाब देने के लिए किस प्रक्रिया को अपनाया? एक साधारण जोड़ को बच्चे ने इस प्रकार किया।   यहाँ विचार करें तो आप पाते हैं कि पहले प्रश्न को बच्चे ने सही हल किया परन्तु दूसरे शल में वही प्रक्रिया अपनाने के बाद भी क्यों उसका उत्तर सही नहीं हैं? क्या हमारी लक्ष्य केवल इतना है कि बच्चा जोड़ना सीख लें? या उसमें जोड़ करने की प्रक्रिया की समझ भी विकसित करनी है वास्तव में जोड़ की समझ के विकास में निहित है। दो या अधिक वस्तुओं या चीजों को एक साथ मिलने से परिणाम के रूप में वस्तुओं की संख्या का बढ़ना। स्थानीय मान का शामिल होना। . यह समझना है कि हासिल अर्थात जोड़ की क्रिया में परिणाम दस या अधिक होने पर दहाई की संख्या अपने बायें स्थित दहाइयों में जुड़ती हैं जिसे हासिल समझा जाता है। . परि

शिक्षण, अधिगम और आकलन में आई.सी.टी. (सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी) का समाकलन

चित्र
यह मॉड्यूल आई.सी.टी. की अवधारणा और शिक्षण-अधिगम में इसकी संभावनाओं पर चर्चा करता है।  मॉड्यूल का उद्देश्य शिक्षक को समीक्षात्मक रूप से विषयवस्तु, संदर्भ, शिक्षण-अधिगम की पद्धति का विश्लेषण करने और उपयुक्त आई.सी.टी. के बारे में जानने के लिए तैयार करना है।  इसके साथ ही यह प्रभावी ढंग से समेकित नीतियाँ बनाने के बारे में भी उन्हें सक्षम बनाता है। अधिगम के उद्देश्य: इस मॉड्यूल को सही ढंग से समझने के बाद, शिक्षार्थी-  • आई.सी.टी. का अर्थ स्पष्ट कर सकेंगे; • विषयस्तु के मूल स्वरूप और शिक्षण-अधिगम की नीतियों के अनुकूल उपयुक्त शिक्षण साधनों की पहचान कर सकेंगे।  • विविध विषयों के लिए शिक्षण, अधिगम व मूल्यांकन हेतु विभिन्न ई-केटेंट (डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक रूप में उपलब्ध सामग्री), उपकरण, सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर की जानकारी प्राप्त साधनों की पहचान कर सकेंगे; • आई.सी.टी. विषयवस्तु शिक्षणशास्त्र समेकन के आधार पर शिक्षण-अधिगम की रूपरेखा निर्माण एवं क्रियान्वयन कर सकेंगे। परामर्शदाता ध्यान दें:- • परामर्शदाता को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जरूरत के अनुसार प्रशिक्षण स्थल पर टेस्कटॉप/ लैपटॉप, प्रोजेक्शन सिस्ट

समावेशी शिक्षा क्या है? समावेशी शिक्षा की विशेषताएं एवं रिपोटिंग/डाक्युमेन्टेशन

चित्र
कक्षा में बच्चों के साथ कार्य करते हुए आपने अनुभव किया होगा कि हर बच्चा स्वयं में कोई न कोई विशिष्टता एवं विविधता लिए होता है । उनके रुचि और रुझानों में भी यह विविधता पाई जाती है।  यह विविधता काफी हद तक उनके परिवेश एवं परिस्थितियों के कारण या शारीरिक आकार प्रकार से प्रभावित होती है। बच्चों में इस विविधता के कारण कुछ खास श्रेणियाँ उभरकर आती हैं। जैसे- तेज/धीमी गति से सीखने वाले, शारीरिक कारणों से सीखने में बाधा अनुभव करने वाले बच्चे, परिवेशीय व लैंगिक विविधता वाले बच्चे।  इनमें कुछ और श्रेणियाँ भी जुड़ सकती हैं। शिक्षक के रूप में इतनी विविधता से भरे बच्चों को हमें कक्षा के भीतर सीखने का समावेशी वातावरण देना होता है। समावेशी शिक्षा अर्थात् ऐसी शिक्षा जो सबके लिए हो। विद्यालय में विविधताओं से भरे सभी प्रकार के बच्चों को एक साथ एक कक्षा में शिक्षा देना ही समावेशी शिक्षा है। समावेशी शिक्षा से तात्पर्य है वह शिक्षा जिसमें किसी एक विशेष व्यक्ति श्रेणी पर निर्भर न होकर सभी को शामिल किया जाता है । "समावेशन शब्द का अपने-आप में कुछ खास अर्थ नहीं होता है। समावेशन के चारों ओर जो वैचारिक, दार्

वर्ल्ड क्लास कैसे होगी हायर एजुकेशन?

चित्र
 एजुकेशन समिट 2020 के कॉलेज कॉलिंग सेशन में डीयू के पूर्व वाइस चांसलर प्रोफेसर दिनेश सिंह, जेएनयू के वाइस चांसलर प्रोफेसर एम जगदीश कुमार और आईआईटी दिलनाली के डायरेक्टर प्रो वी रामगोपाल राव जुड़े।   हॉयर एजुकेशन से जुड़े मुद्दों पर विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी और बताया कि कितने जरूरी बदलाव लंबे समय से रुके हुए थे, जो छात्रों के हित के लिए अब किए जाएंगे।  प्रोफेसर दिनेश सिंह ने अपनी बात रखते हुए कहा कि 4 साल का कोर्सर्स छात्रों के लिए बहुत सुविधाजनक होगा।   छात्र 1 साल का कोर्स कर सर्टिफिकेट, 2 साल के बाद डिप्लोमा और तीन साल पूरे करके डिग्री ले जाएगा और जब चाहें कोर्स से एग्जिट ले जाएगा।   इससे छात्रों को फ्लेक्सिबिलिटी और फ्रीडम दोनों मिलेंगे।  इससे छात्रों को अपनी पसंद के सब्नजेक्ट पर फोकस करने में आसानी होगी।   पूरे कोर्स के दौरान छात्र अपने बारे में कहते हैं कि एग्जिट लेने के लिए स्वतंत्र रूप से वे यह खुद तय कर लेंगे कि वे कब नौकरी करना चाहते हैं या किसी सबजेट पर रिसर्च करना चाहते हैं।  उनहोनें देश को उत्तरलेज इकॉनमी बनाने की बात भी कही।  जेएनयू के वीसी प्रोफेसर एम जगदीश कुमार ने कहा क

सामुदायिक सहयोग हेतु कार्य-योजना निर्माण कैसे करें?

चित्र
विद्यालय प्रबंध समिति (SMC) के सदस्य विद्यालय और समुदाय के बीच प्रमुख सेतु हं भूमिका निभा सकते हैं। इसके लिए व्यक्तिगत स्तर पर प्रत्येक विद्यालय को एस०एम०सी0 सहयोग से सामुदायिक सहयोग की कार्य योजना विकसित करनी होगी। कार्य योजना के संभावित क्षेत्र निम्नवत हो सकते हैं। (अ) भौतिक संसाधन-चहारदिवारी, पंखा, फर्नीचर, स्टेशनरी, पेयजल, स्मार्ट बोर्ड, शैक्षिक तकनीकी से संबंधित उपकरण आदि। (ब) मानवीय संसाधन-सामुदायिक संसाधनों का कक्षा-कक्षीय एवं अन्य सहशैक्षिक क्रियाकलाप में उपयोग।  उक्त बिन्दुओं के परिप्रेक्ष्य में हमें अपनी संस्था उपलब्ध भौतिक / मानवीय संसाधनों की उपलब्धता की समीक्षा करने के बाद विद्यालय की आवश्यकताओं का चिह्नांकन करना होगा तदुपरान्त उन आवश्यकताओं का वर्गीकरण करते हुए सामुदायिक सहभागिता के प्रकार को स्पष्ट रूप से रेखांकित करते हुए समुदाय से संपर्क स्थापित करना होगा।  इस प्रकार आवश्यकताओं के अनुसार संदर्भों/ स्रोतों की मदद लेते हुए कार्य योजना विकसित कर हम अपने कार्य को और बेहतर बना सकते हैं तथा समुदाय से बेहतर जुड़ाव स्थापित कर सकते हैं ।             सामुदायिक सहयोग की कार्य योज

शिक्षण के तरीके और गतिविधियाँ

चित्र
परिवेश, पर-परिवार, कक्षा-कक्षा में उपलब्ध विभिन्न आकृति की वस्तुओं पर बातचीत करने छूकर पता करने, उलटने--पलटने एवं विविध रूपों में जमाने के अनुभव का भीका देने से बच्चों में ज्यामितीय आकृति सम्बन्धी अवधारणात्मक समझ का विकास होता है। यह समझ निम्नांकित रूपों में हो सकती है- एक ही आकृति के कई रूप हो सकते हैं। एक ही आकृति में एक से अधिक रूप समाहित होते हैं। एक आकृति के अलग-अलग संयोजन से नयी आकृतियाँ बनती हैं। अलग-अलग प्रकार की आकृतियों को समझने के लिए एक ही प्रकार के तरीके कारगर नहीं होते अर्थात प्रत्येक प्रकार की आकृति को एक ही प्रकार से नहीं समझा जा सकता। इस प्रक्रिया के दौरान बच्चे यह भी समझने व अनुभव करने में समर्थ हो जाते हैं कि गेंद और गोले का चित्र उसे पूरी तरह से व्यक्त नहीं कर पाता है।  यह वृत्ताकार क्षेत्र से किस प्रकार भिन्म है? इन आकृतियों की समझ उन्हें आगे चलकर परिमाप, क्षेत्रफल एवं आयतन तक किस प्रकार ले जाती है? इनके अवधारणात्मक समझ के विकास के लिए शुरुआती कक्षाओं में आगे दिए गए सुझाव और गतिविधियों का शिक्षण में प्रयोग बच्चों के सीखने में सार्थक प्रभाव लाएगा। गतिविधि-1, अपर द

विद्यालयों में सहशैक्षिक गतिविधियों को कैसे क्रियान्वित करें?

चित्र
प्रारम्भिक विद्यालयों में सह शैक्षिक गतिविधियों के आयोजन में प्रधानाध्यापक एवं अध्यापक की भूमिका को निम्नवत् देखा जा सकता है।  • विद्यालयों में सहशैक्षिक गतिविधियों को कैसे क्रियान्वित करें, इसके बारे में परस्पर चर्चा करना तथा आवश्यक सहयोग प्रदान करते हुए निरंतर संवाद बनाये रखना। क्रियाकलापों का अनुश्रवण करना तथा आयी हुई समस्याओं का निराकरण सभी की सहभागिता द्वारा करना। इन क्रियाकलापों में बालिकाओं की सहभागिता अधिक से अधिक हो साथ ही साथ सभी छात्रों की प्रतिभागिता सुनिश्चित हो, इस हेतु सामूहिक जिम्मेदारी लेना।। • समय सारिणी में खेलकूद/ पीटी,ड्राइंग, क्राफ्ट, संगीत, सिलाई/बुनाई व विज्ञान के कार्यों प्रतियोगिताएं हेतु स्थान व वादन को सुनिश्चित करना।  • स्कूलों में माहवार/त्रैमासिक कितनी बार किस प्रकार की प्रतियोगिताएं कराई गई, इसकी जानकारी प्राप्त करना एवं रिकार्ड करना। बच्चों के स्तर एवं रुचि के अनुसार कहानियां, चुटकुले, कविता आदि का संकलन स्वयं करना तथा बच्चों से कराना।  • विज्ञान/गणित सम्बन्धी प्रतियोगिताओं हेतु विषय से सम्बन्धित प्रश्न बैंक रखना। आवश्यक वस्तुओं का संग्रह रखना। जन सहभाग

समुदाय को विद्यालय से कैसे जोड़ें?

चित्र
यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है जिससे हमारे बहुत से विद्यालयों को जूझना पड़ता है।  लगातार सरकारी/विभागीय निर्देशों और एस०एम०सी0 के गठन के बावजूद हममें से अधिकांश शिक्षक अभी भी अपने विद्यालयों से समुदाय को अपेक्षानुरूप नहीं जोड़ पा रहे हैं। इस मुद्दे की पड़ताल पर जाने से पूर्व सबसे पहले हम यह विचार करें कि हमने पिछले छह महीने में कब-कब और किस उद्देश्य से समुदाय के लोगों को स्कूल में बुलाया था या उनसे मुलाकात की थी। हम पाएँगे कि यह मुलाकातें या निमंत्रण बहुत सीमित मात्रा में तथा औपचारिक ही ज्यादा थे।  समुदाय के व्यक्तित्व किन्हीं राष्ट्रीय पर्वों या सभाओं में विद्यालय आए भी तो उनकी भूमिका कार्यक्रम में मूक दर्शक की तरह बैठे रहना भर ही रही।  स्वाभाविक है कि खाली बैठे रहने (निरुददेश्य) की भूमिका में स्वयं को पाकर समुदाय का व्यक्ति हमारे पास आखिर क्यों और कब तक आता जाता रहेगा ? आज हम सभी का जीवन विभिन्न प्रकार की व्यस्तताओं से भरा है और समुदाय के हर व्यक्ति ।  सबकी कमोबेश यही स्थिति है। समय नहीं मिल पाया आज के दौर का ऐसा वाक्य है कि जिसे हर तीसरा व्यक्ति कहता मिल जाता है। स्वाभाविक भी है

बाल संसद : उद्देश्य, शिक्षक की भूमिका, बाल संसद गठन, एवं समितियों के प्रमुख कार्य

चित्र
  बाल संसद क्या है?  बालक- बालिकाओं का एक मंच जिसका प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में गठन किया जाता है।   बाल संसद के उद्देश्य :  जीवन मूल्यों का विकास व्यक्तित्व विकास, नेतृत्व क्षमता, निर्णय लेने का क्षमता, सही/गलत स्पर्श की समझ, समय प्रबन्ध इत्यादि पर स्पष्ट समझ। शिक्षक की भूमिका:  बाल संसद के संयोजक के रूप में सहयोग करना।               मंत्रिमण्डल/स्वरूप /गठन समितियां:  1. प्रधानमंत्री                             1 व 2 में एक छात्रा का चयन अवश्य हो। 2 उप-प्रधानमंत्री 3. शिक्षा मंत्री                             सह मीना मंच मंत्री (अनिवार्य रूप से छात्रा है) 4. उपशिक्षा मंत्री 5, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता मंत्री 6. उप स्वास्थ्य एवं स्वच्छता मंत्री 7. जल एवं कृषि मंत्री 8. उप जल एवं कृषि मंत्री 9. पुस्तकालय एवं विज्ञान मंत्री  10. उप पुस्तकालय एवं विज्ञान मंत्री 11. साँस्कृतिक एवं खेल मंत्री 12 उप साँस्कृतिक एवं खेल मंत्री                             समितियों के प्रमुख कार्य मंत्रिमण्डल                                               कार्य प्रधानमंत्री                          विश

विद्यालय व्यवस्था : शिक्षकों के कौशल, विविधता की स्वीकार्यता और समाधान

चित्र
विद्यार्थियों में अंतर की पहचान करने के लिए संवेदनशीलता विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के गुणों और कमजोरियों, योग्यता और रुचि के बारे में जागरूक होना।  • विद्यार्थियों के बीच सामाजिक-सांस्कृतिक, सामाजिक आर्थिक और भौतिक विविधताओं की स्वीकृति—सामाजिक संरचना, पारंपरिक और सांस्कृतिक प्रथाओं, प्राकृतिक आवास, घर तथा पड़ोस में परिवेश को समझना। • मतभेदों की सराहना करना और उन्हें संसाधन के रूप में मानना- अधिगम प्रक्रिया में बच्चों के विविध संदर्भ और ज्ञान का उपयोग करना शिक्षण-अधिगम की विभिन्न जरूरतों को समझने के लिए समानुभूति और कार्य- अधिगम शैलियों पर विचार करना और उसी के अनुसार प्रतिक्रिया देना।  शिक्षार्थियों को विभिन्न विकल्प प्रदान करने के लिए संसाधन जुटाने की क्षमता- आस-पास से कम लागत की सामग्री, कलाकृतियों, अधिगम उपयोगी सहायक स्थानों, मानव संसाधनों और मुद्रित तथा डिजिटल रूप में अनेक संसाधनों को पहचानना एवं व्यवस्थित करना। • प्रौद्योगिकी के उपयोग से अधिगम सहायता करना- विभिन्न एप्लिकेशन का उपयोग। उदाहरण के लिए गूगल आर्ट एंड कल्चर, गूगल स्काई, गूगल अर्थ, विषय विशिष्ट ऐप्स जियोजेब्रा, ट्रक्स ऑफ़

सीखने के प्रतिफल, शिक्षण-विधियाँ, समावेशी शिक्षा में आ शिक्षकों की भूमिका

चित्र
रा.शै.अ.प्र.प. ने सीखने के प्रतिफल को विकसित किया है जो पठन सामग्री को रटकर याद करने पर आधारित मूल्यांकन से दूर हटाने के लिए बनाया गया है।  योग्यता (सीखने के प्रतिफल) आधारित मूल्यांकन पर जोर देकर, शिक्षकों और पूरी व्यवस्था को यह समझने में मदद की गई है कि बच्चे ज्ञान, कौशल और सामाजिक-व्यक्तिगत गुणों और दृष्टिकोणों में परिवर्तन के मामले में वर्ष के दौरान एक विशेष कक्षा में क्या हासिल करेंगे।  सीखने के प्रतिफल ज्ञान और कौशल से परिपूर्ण ऐसे कथन हैं जिन्हें बच्चों को एक विशेष कक्षा या पाठ्यक्रम के अंत तक प्राप्त करने की आवश्यकता है और यह अधिगम संवर्धन की उन शिक्षणशास्त्रीय विधियों से समर्थित हैं जिनका क्रियान्वयन शिक्षकों द्वारा करने की आवश्यकता है।  ये कथन प्रक्रिया आधारित हैं और समग्र विकास के पैमाने पर बच्चे की प्रगति का आकलन करने के लिए गुणात्मक या मात्रात्मक दोनों तरीके से जाँच योग्य बिंदु प्रदान करते हैं। पर्यावरणीय अध्ययन के लिए सीखने के दो प्रतिफल नीचे दिए गए हैं। . विद्यार्थी विभिन्न आयुवर्ग के लोगों, जानवरों और पक्षियों में भोजन तथा पानी की आवश्यकता, भोजन और पानी की उपलब्धता तथा घ